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जैन रामायण चतुर्थ सर्ग।
आयुका हुआ तब नघुष राजाने उसको गद्दीपर बिठाकर, सिद्धि-मोक्षकी उत्तम उपाय दीक्षाको ग्रहण कर लिया। __ अढाई महोत्सवके दिन आये । पूर्वकी भाँति ही मंत्रियोंने सोदासके राज्यमें भी · अमारी घोषणा ' करवा दी। उन्होंने सोदाससे भी कहा:-" हे राजन् ! आपके पूर्वज अहंतोंके अट्ठाई महोत्सवमें माँस भक्षण नहीं करते थे, इस लिए आप भी न करना ।"
सोदासने बात मान ली। मगर उसको मांस-भक्षण बहुत प्रिय था । इस लिए उसने अपने रसोईदारको आज्ञा दी कि, तुझको गुप्तरीत्या किसी जगहसे अवश्यमेव मांस लाना चाहिए । मगर अमारी घोषणाके कारण उसको कहींसे भी मांस नहीं मिला। आकाशसे फूल प्राप्त करनेकी आशाके समान; असत् वस्तु प्राप्तिकी इच्छाके समान; उसका प्रयत्न निष्फल गया। ___ इतना फिरा तो भी मांस कहींसे नहीं मिला और राजाकी आज्ञा है कि, माँस लाना । अब मैं क्या करूँ ? ऐसा सोचते हुए रसोइया जा रहा था । इतनेहीमें उसने एक मरा हुआ बालक देखा । रसोईदारने उस बालकको, ले जा, उसका मांस बना, राजाको खिलाया। सोदासने उस मांसकी बहुत प्रशंसा की और उसको बहुत ही तृप्तिकर बतलाया। :. उसने रसोइयासे पूछा:-" मुझको यह मांस अपूर्व