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जन रामायण तृतीय सर्ग |
( तीक्ष्ण हथियार पास में होते हुए भुजाओं से कौन युद्ध करेगा ? ) मैं बालक हूँ, ऐसा सोचकर मुझपर अनुकंपा न कीजिए । क्योंकि अपने कुलमें जन्में हुए पुरुषोंको जब बल दिखाने का अवसर आता है तब उनकी आयुका प्रमाण नहीं देखा जाता है । "
बहुत आग्रह करनेपर उन्होंने हनुमानको युद्ध में जाने की आज्ञा दी। उन्होंने हनुमान के मस्तकका चुंबन लिया । फिर उसने अपने बड़ोंको प्रणामकर प्रस्थान-मंगल किया।
दुर्जय पराक्रमी हनुमान बड़े २ सामंतों, सेनापतियों और सैनिकों सहित रावणकी छावनी में गया । हनुमानका आना रावणको ऐसा ज्ञात हुआ मानो साक्षात विजय ही आई हैं | हनुमानने जाकर रावणको प्रणाम किया । रावणने हर्ष और स्नेहके साथ उसको अपनी गोद में बिठा लिया ।
पश्चात रावणने वरुणकी नगरीके बाहिर जाकर युद्धके बाजे बजवाये । वरुण भी युद्धका आह्वाहन जान अपने सौ पुत्रों सहित युद्ध करनेके लिए नगरसे बाहिर आया ।
युद्ध प्रारंभ हुआ। वरुणके पुत्र रावणके साथ युद्ध करने लगे और वरुण सुग्रीव आदि वीरोंके साथ युद्ध करने लगा | महान पराक्रमी और रक्तनेत्री वरुणके पुत्रोंने रावणको घबरा दिया, जैसे कि जातिवान कुत्ते, सूअरोंको घबरा देते हैं.!