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(१७) इस महावीर-हिन्दी-जैन-ग्रन्थमालामें हमने खास तरहसे प्राचीन नम्बर-नो बनाए हुए ग्रन्थोंका हिन्दी अनुवाद ही प्रकाशित करना स्थिर किया है । मालाका प्रथम ग्रंथ, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य रचित विपरिशलाका-पुरुप-चरित्रके सातवें पर्वका हिन्दी अनुवाद पाठकोंके हाथमें है । दूसरा ग्रंथ इन्हीं आचार्य महाराजके बनाये हुए त्रिषष्ठिशलाका-पुरुष-चरित्र प्रथम पर्वका अनुवाद होगा। उसमें श्री ऋषभदेव भगवानका और उनके पुत्र भरतचक्रवर्तीका जीवनवृत्तान्त है। ___ मालाको सचित्र निकालनेका हमारा विचार है । प्रस्तुत ग्रंथमें शीघ्रताके कारण हम केवल एक ही चित्र दे सके हैं। वह चित्र है, “सीताका अग्निप्रवेश' । अगले ग्रंथमें हम विशेष चित्र देनेका प्रयत्न करेंगे। ___ सर्व साधारणके सुभीतेके लिए, थोड़े पढ़े लिखे हमारे मारवाड़ी भाई भी सरलतासे पढ़ सकें इसलिए हमने ग्रंथमें बड़े टाइपका उपयोग किया है।
आशा है पाठक हमारे इस प्रयत्नको अपनायँगे और मालाके स्थायी ग्राहक बन हमारे उत्साहको बढ़ायँगे ।
मालाके स्थायी ग्राहकोंके नियम । १-आठ आने जमा करानेसे स्थायी ग्राहक होते हैं। २-स्थायी-ग्राहकोंको मालाकी प्रत्येक पुस्तक पौनी कीमतमें दी
जाती है। ३-स्थायी-ग्राहकोंको मालाकी ४) रु. की पुस्तकें वर्षभरमें जरूर
लेनी पड़ती हैं । विशेष लेना न लेना उनकी इच्छा पर निर्भर है।