________________
हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन ।
१३३
पवनंजय एक चिता चुन रहा है । चिताके चुन जानेपर वह उसके पास खड़ा हो गया और बोला:
"हे वनदेवताओ ! विद्याधरोंके राजा प्रहलादका, मैं पुत्र हूँ, माता मेरी केतुमती है, अंजना नामा महा सती मेरी पत्नी थी । विवाह होनेके बादहीसे मैंने दुर्बुद्धि के उदयसे, उस निर्दोष स्त्रीको सताया था। उसको छोड़ कर स्वामीका कार्य करनेके लिए मैं रणयात्राको जा रहा था। रास्तेमें दैवयोगसे मेरी बुद्धि फिरी । मैंने उसको निर्दोष समझा, इस लिए मैं वहाँसे वापिस लौटकर रातको, उसके पास गया ।
फिर उसके साथ स्वच्छंदतासे क्रीडा कर रवाना होते समय अपने आनेकी निशानी स्वरूप मुद्रिका उसको दे मातापिताको खबर किये बिना ही, जैसे चुपकेसे आया था वैसे ही, पुनः सेनामें लौट गया।
उसी दिन उसके गर्भ रहा । मेरे दोषके कारण, मेरे मातापिताने उसको दूषित समझकर घरसे निकाल दिया। मालूम नहीं कि वह अब कहाँ है ? वह पहिले भी निर्दोष ही थी और अब भी है। मगर मेरी अज्ञानतासे वह भयंकर दशाको प्राप्त हुई है। धिक्कार है ! मेरे समान पतिको धिक्कार है !
उसकी शोधके लिए मैं सारी पृथ्वीमें भटका, मगर जैसे रत्नागर सागरमें मन्द भागीको रत्न नहीं मिलता,