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________________ wwvwwnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn.. १३२ जैन रामायण तृतीय सर्ग । गया और प्रहलाद और केतुमतीको सारा वृत्तान्त कह सुनाया। सुनकर पाषाण-आघातित हृदयकी भाँति उस वृत्त रूपी आघातसे पीडित हो, केतुमती मूच्छित होकर पृथ्वीपर गिर गई। थोड़ी वारके बाद उसको चेत हुआ । वह बोली:-" हे कठोर हृदयी प्रहसित ! मरनेका निश्चय करनेवाले अपने प्रिय मित्रको अकेला छोड़ कर तू यहाँ कैसे आया ? हाय ! मुझ पापिनीने विना विचारे अंजनाके तुल्य वास्तविक निर्दोष स्त्रीको घरसे निकाल कर कैसा बुरा कार्य किया ? उस साध्वी पर मैंने मिथ्या दोष लगाया उसका मुझको यहीं पूरा फल मिल गया । सत्य है'अत्युग्र पुण्यपापानामिहैव ह्याप्यते फलम् ।' ( अति उग्र पाप और पुण्यका फल मनुष्योंको यहीं मिल जाता है।) पवनंजय और अंजनाका सम्मेलन। रुदन करती हुई केतुमतीका निवारण कर, प्रहलाद पवनंजयकी खोजमें चला । जैसे कि-पवनंजय अंजनाकी खोजमें गया था । अपने मित्र विद्याधर राजाओंके पास भी प्रहलादने दूत भेजकर पवनंजय और अंजनाकी खोज करानेकी बात कहला दी। प्रहलाद अनेक विद्याधरोंको साथ लेकर अपने पुत्र और पुत्रवधूकी खोज करता हुआ भूतवन नामा वनमें माया । वहाँ जाकर उसने पवनंजयको देखा। देखा
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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