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जैन रामायण तृतीय सर्ग।
पवनंजयके लिए माँगा । महेंद्रने स्वीकार कर लिया । क्यों कि वह तो पहिलेहीसे यह बात चाहता था । प्रह्लादकी माँग तो एक निमित्तमात्र थी। फिर दोनों यह ठहराकर अपने अपने स्थानपर चलेगये कि, आजके तीसरे दिन मानस सरोवर पर ब्याह करदेना।
महेन्द्रने और प्रह्लादने, अपने अपने स्वजन परिवार सहित, मानस सरोवरपर जाकर डेरे दिये।
अंजनाके प्रति पवनंजयकी अप्रीति। पवनंजयने अपने प्रहसित ' नामक मित्रसे पूछा:अंजनासुंदरी कैसी है ? क्या तुमने कभी उसको देखा है ?"
प्रहसितने हँसकर उत्तर दियाः-" मैंने उसको देखा है वह रंभादि अप्सराओंसे भी अधिक सौंदर्यवान है। उसका रूप देखनेहीसे समझमें आ सकता है । वाणीवाचाल मनुष्यकी वाणी-भी उसके रूपका पूरा वर्णन नहीं कर सकती है।". __ पवनंजय बोला:--" मित्र ! अभी विवाहका दिन दूर है; और मेरा हृदय, आज ही उस सुंदरीको देखनेके लिए उत्सुक हो रहा है । अतः यह उत्सुकता कैसे दूर हो ? मैं कैसे आज ही उसे देख सकूँ ? प्यारी स्त्रीके लिए उत्कंकित बने हुए पुरुषोंको एक घड़ी दिनके समान
और दिन महीनेके समान लगने लगता है । तो फिर मेरे में तीन दिन कैसे निकलेंगे?" .