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रावणका दिग्विजय |
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यह सुनकर रावणने उसी समय मुनिके सामने नियम किया कि, वह कभी उसकी इच्छा नहीं रखनेवाली परari साथ संयोग नहीं करेगा । फिर ज्ञान - रत्नोंके सागर मुनिको वंदना करनेके बाद रावण पुष्पकविमानमें बैठकर अपनी नगरी में गया और अपने नगरकी स्त्रियोंके नेत्ररूपी नील कमलोंको हर्षवैभव देनेमें चंद्रमा के समान हुआ ।