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________________ दी है । इससे संस्कृतके नीति वाक्य जबानी याद कर पाठक बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं। ___ श्रीयुत चमनलाल सांकलचंदके अनुवादमें राक्षसवंशकी मूल उत्पत्तिके विषयमें कुछ उल्लेख है । यद्यपि इसका होना हम भी आवश्यकीय, समझते हैं, तो भी हमने अपने अनुवादमें उसका उल्लेख नहीं किया है । इसके दो कारण हैं; प्रथम तो हमको आचार्य महाराजकी कृतिमें कुछ इधर उधर करना अभीष्ट नहीं था । दूसरे हम हेमचंद्राचार्य-रचित संपूर्ण त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्रका अनुवाद करना चाहते हैं। दूसरे पर्वमें सगर चक्रवर्तीके अधिकारमें ये सब बातें आगई हैं । इसलिए पाठक वहाँसे ये बातें देख सकेंगे। अपने अनुवादसे हमें हिन्दी करनेकी अनुमति दी इसके लिए हम जैनधर्म-प्रसारक सभा भावनगरके कृतज्ञ हैं । इस ग्रंथकी आलोचना लिखकर, इसकी खूबियोंपर विशेष प्रकारसे प्रकाश डालनेकी हमारी इच्छा थी; मगर उस इच्छाको हम शीघ्रताके कारण कार्यरूपमें परिणत नहीं कर सके । दूसरे हमने ऐसा करना अपना अनुचित साहस भी समझा । क्योंकि एक महान आचार्यकी कृति पर आलोचना करने जितना सामर्थ्य अबतक हममें नहीं है। हम यह भली भाँति समझते हैं कि कलिकाल सर्वज्ञके नामसे ख्यात आचार्य महाराजकी कृतिको ठीक ठीक हिन्दीमें लिखनेकी हमारी योग्यता नहीं है। यह कार्य किसी विद्वान साधु या श्रावकको करना चाहिए था, मगर किसीने नहीं किया । हमने दो चारोंको लिखा भी मगर किसीने आशाप्रद उत्तर नहीं दिया । इसलिए, अपने हिन्दी भाषी भाइयोंकी इच्छाको तृप्त करनेके लिए; हिन्दी
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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