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________________ ६२ जैन प्रतिमाविज्ञान यह देवी दो हाथों में ज्वाला धारण करती है।' वसुनन्दि इसके अष्टभुजा होने का उल्लेख तो करते हैं पर केवल चार प्रायुध, धनुष, खड्ग, बाण मोर खेट गिनाकर छोड़ देते हैं । २ नेमिचन्द्र ने धनुष और बाण इन दो प्रायुधों का उल्लेख किया है, शेष छह का नहीं ।' माशाधर ने भी धनुष, खेट, खड्ग और चक्र इन चार का उल्लेख कर मादि आदि कहा है। वसुनन्दि की सूची में वाण है जो नेमिचन्द्र की सूची में नहीं है । वह मिला देने से पांच प्रायुधों की निश्चित जानकारी संभव है । इनके अलावा एक-एक हाथ अभय पौर वरदमुद्रा में भी हो सकते हैं। ज्वालामालिनी को दिगम्बर परम्परा में अष्टम तीर्थकर की यक्षी भी माना गया है। वह्निदेवी के नाम से ज्ञात इस विद्यादेवी को यक्षी के रूप में भी श्वेतवर्णवाली, महिषवाहना और अष्टभुजा कहा गया है । ज्वालामालिनी यक्षी के जो प्रायुध प्राशाधर मोर नेमिचन्द्र ने बताये हैं, वे इस प्रकार हैं, दायें हाथों में त्रिशूल, बाण, मत्स्य और खड्ग; बायें हाथों में चक्र, धनुष, पाश मोर ढाल । वसुनन्दि ने दो आयुध तो नही बताये पर शेष छः प्रायुधों का उल्लेख किया है जिनमें से एक वज्र भी है । बाकी पांच बाण, त्रिशूल, पाश ,धनुष और मत्स्य ये हैं। ज्वालामालिनी कल्प में खडग और ढाल के बदले फल और वरद का विधान है। मानवी बारहवी विद्यादेवी का वर्ण नील माना गया है । केवल निर्वाणकलिका कार ने उसे श्याम वर्ण कहा है जो नीले के लिये भी प्रयुक्त होता है। दिगम्बरों के अनुसार मानवी शूकरवाहना है, किन्तु श्वेताम्बर ग्रन्थों में उसे नील सरोज (कही साधारण सरोज)पर आसीन बताया गया है । दोनों परम्परात्रों में मानवी को चतुर्भुजा माना गया है पर वसुनन्दि ने केवल एक प्रायुध-विशूल का, आशाधर ने त्रिशूल और मत्स्य का, · मिचन्द्र ने मत्स्य, त्रिशूल, और खड्ग इन आयुधों का नाम बताया है । चौथे आयुध का उल्लेख नेमिचन्द्र ने भी नहीं किया। प्राचारदिनकर ने देवी के हाथ में वृक्ष बताया है । चारों हाथों के प्रायुधों का विवरण निर्वाणकलिका में उपलब्ध है। उसके अनुसार बायें हाथ में प्रक्षसूत्र और वृक्ष तथा दायें हाथों में से एक हाथ में पाश और दूसरा हाथ १. उदय ३३, पन्ना १६२ । २. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ६ । ३. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ २८७ । ४. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ २८८ ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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