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जैन प्रतिमा विज्ञान
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तीर्थंकरों मे से शान्ति, कुन्थु औौर पर ये तीन चक्रवर्ती सम्राट् थे 'वासुपूज्य, मल्लि, नेमि, पाखं प्रोर महावीर इन्होने राज्य नही किया, अन्यों ने किया था ।
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जिन वृक्षो के नीचे तीर्थंकरों ने दीक्षा ग्रहण की थी अथवा जिन वृक्षों के नीचे तपस्या करते हुए उन्हे केवलज्ञान प्राप्त हुआ, वे दीक्षावृक्ष और केवलवृक्ष कहे जाते है । इन वृक्षो को जैन प्रतिमाशास्त्र मे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है । तिलोयपण्णत्तीकार ने बताया है कि ऋषभादि तीर्थंकरों को जिन वृक्षों के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था वे ही प्रशोकवृक्ष हैं । इसलिए तीर्थंकर प्रतिमाम्रां के साथ अशा वृक्ष बनाने की परम्परा है, भले ही तीर्थकर ने किसी भी जाति के वृक्ष के नीच केवलज्ञान प्राप्त किया हो ।
वृक्षों की सूची निम्न प्रकार है' :
१. न्यग्रोध
२. सप्तपर्ण
५. प्रियंगु
८. नाग
४. सरल
७. शिरीष
१०. धूली (मालि )
११ पलाश
१३ पाटल
१४. पिप्पल
१६ नन्दी
१७. तिलक
१६. कंकेलि ( श क ) २०. चम्पा
२२. मेषशृंग
२३. धव
३. शाल
६. प्रियंगु
६. प्रक्ष ( बहेडा )
१२. तेंदू
१५ दधिप
१८. प्राम्र
२१. बकुल
२४. साल
जयसेन' और नेमिचन्द्र द्वारा दी गयी सूचिया भी प्राय: उपर्युक्त प्रकार की है ।
समवशरण
तीर्थंकर नामक कर्म प्रकृति के उदय से अर्हत् अवस्था में भगवान् जीवमात्र के कल्याण हेतु उपदेश दिया करते है । उपदेश सभा या समवशरण
१. तिलायपण्णत्ता, ४ / ६०६ २. ४/१५
३. तिलोयपण्णत्ती, ४/६१६-६१८
४. प्रतिष्ठापाठ, ८३५ ।
५. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ५१२