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जैन प्रतिमाविज्ञान
पन्नगहस्त बताया है।
__ मूल जैन परम्परा में सूर्य चन्द्र आदि को ज्योतिष्क देवों के समूह में सम्मिलित किया गया है । ज्योतिष्क देवों के पांच समूह हैं, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा ।' चन्द्र ज्योतिष्क देवों का इन्द्र है और सूर्य प्रतीन्द्र है । प्रत्येक चन्द्र के अठासी ग्रह बताये गए हैं जिनमें से बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल और शनि ये प्रथम पांच हैं।' प्रत्येक चन्द्र के २८ नक्षत्र होते हैं।' नक्षत्रों के प्राकार का वर्णन तिलोयपण्णत्ती में है । नेमिचन्द्र के अनुसार चन्द्र मिहाधिरूढ़ और कुन्त (भाला)धारी है । सूर्य अश्वारूढ़ है ।'
१. उदय ३३, पन्ना १८१ । २. तिलोयपण्णत्ती, ७। ३. वही, ७।१४-२२ ४. वही, ७।२५-२८ ५. वही, ७।४६५-४६७ ६. नेमिचन्द्र ने (प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३१६-३२२) यक्ष, वैश्वानर, राक्षस, नधृत, पन्नग, असुर, सुकुमार, पितृ, विश्वमालिनि, चमर, वैरोचन, महाविद्यामार, विश्वेश्वर, पिंडाशी, ये पंद्रह तिषिदेव बताये हैं।