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दिक्कुमारिकाएं
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उपर्युक्त देवियों मे से ह्री का वर्ण लाल बताया गया है। अन्य देव कन्याएं सुवर्ण के समान पीतवर्ण की है। नेमिचन्द्र ने इन देवियों को पुष्पमुखकलशकमलहस्ता लिखा है पर वसुनन्दि ने उन्हें पुष्पमुम्बकमल हस्ता और चतुर्भुजा बताया है। प्राशाधर ने भी उसी प्रकार का वर्णन किया है।
तीर्थकर जननी की सेवा करने वाली छप्पन दिक्कुमारियो का भी उल्लेख जैन ग्रन्थों में मिलता है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उनकी सूची निम्न प्रकार दी गयी है। आठ अधोलोकवासिनी : भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधारा
(सुव्रता), विचित्रा (वत्समित्रा), पुष्पमाला और
अदिता (नंदिता) पाठ ऊर्ध्वलोकवासिनी : मघंकरा, मेघवनी, मुमेधा, मेधमालिनी, तोयधारा,
विचित्रा, वारिपेणा मौर बलाहिका आठ पूर्व रुचकाद्रि स्थित : नंदा, उत्तरानंदा, पानंदा, आनंदवर्धना, विजया,
वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता अाठ दक्षिण रुचकाद्रि स्थित : ममाहाग, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती,
शेषवतो, चित्रगुप्ता और वसुधरा पाठ पश्चिम रुचकाद्रि स्थित : इलादेवी, मुरादेवी, पृथिवी, पद्मवती, एकनासा,
अनवमिका, भद्रा और अशोका पाठ उत्तर रुचकाद्रि स्थित : अलंबुगा, मिश्रकेशी, पुण्डरीका, वारुणी, हासा,
मर्वप्रभा, श्री, ह्री चार विदिक रुचक सैल से : चित्रा, चित्रकन का, सतेरा और मौत्रामणी चार रुचक द्वीप से : रूपा, रूपांशिका, सुरूपा और रूपकावतो।
१. वसुनन्दि/६ २. पर्व १, सर्प ।