________________
बस दिक्पाल
११९
जैनों ने अग्नि को रक्तवर्ण, यम, नैर्ऋत्य और पवन को श्यामवर्ण, वरुण, ईशान, चन्द्र और धरणेन्द्र को श्वेत वर्ण तथा इन्द्र और कुबेर को स्वर्ण के समान पीत वर्ण माना है । श्वेताम्बर परम्परा में चन्द्र के स्थान पर ब्रह्मा को कध्वं दिशा का अधीश्वर कहा गया है जिसका वर्ण सुवर्ण के समान है। वाहन
दिक्पालों के वाहनों के संबंध में जैनों की मान्यता प्राय: अग्निपुराण के' विधान से मिलती-जुलती है । केवल कुबेर के वाहन के संबंध में भिन्नता है। मग्नि पुराण में कुबेर को मेषस्थ बताया गया है। पर दिगम्बर जैन परम्परा के ग्रन्थों में उसे पुष्पक विमान में पासीन और श्वेताम्बर परम्परा के प्राचारदिनकर में नरवाहन कहा गया है । वसुनन्दि, माशापर और नेमिचन्द्र ने वरुण का वाहन करिमकर कहा है जबकि अग्निपुराणमें वह मकर बताया गया है । पषिकतर प्रतिमानों में वरुण का वाहन करिमकर रूप में मिलता है ।
__दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार ऊर्ध्व दिशा का लोकपाल सोम या चन्द्र सिंहासनारूढ़ होता है । श्वेताम्बर जैन परम्परा का ब्रह्मा हंसारूढ़ बताया गया है। प्रधोदिशा के लोकपाल नागेन्द्र धरण की सवारी प्राशाधर मौर नेमिचन्द्र ने कच्छप बतायी है पर प्राचारदिनकर के अनुसार धरणेन्द्र पद्म पर मासीन है और कृष्ण वर्ण का है । पायुध
दिगम्बर ग्रन्थों में इन्द्र को वजी एवं अग्नि को पक्षसूत्र प्रौर कमण्डलु युक्त माना गया है । प्राचारदिनकर के अनुमार अग्नि के हाथों में धनुष और बाण होते हैं । निर्वाणकलिका ने धनुष के स्थान पर शक्ति बतायी है । मत्स्यपुराण में अग्नि के आयुध प्रक्षसूत्र और कमण्डलु बताये गये हैं पर प्रग्निपुराणमें पग्नि को शक्तिमान् ही कहा है ।
यम दण्डी हैं पर उनके द्वितीय प्रायुध के संबंध में मतवैषम्य है। पाशापर ने वह प्रायुध धनुष कहा है पर नेमिचन्द्र ने नाग। मत्स्यपुराण में पमके भायुष दण्ड मोर पाश बताये गये हैं ।
१. पग्निपुराण,५१/१४-१५ २. वही, ५१/१५ ३. नरवाहन कुबेर की परम्परा मत्स्यपुराण और विष्णुधर्मोत्तर की है।
मत्स्यपुराणमें अग्निका वाहन प्रर्षचन्द्र है।