SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैन प्रतिमाविज्ञान कुवेरा यक्षी ___ सकलचन्द्रगणी के प्रतिष्ठाकल्प (पृष्ठ २०) में इम यक्षी को नरवाहना और श्रतांका बताया गया है। यह मथुरा पुरी के मुपार्श्वस्तूप की रक्षिका यक्षी के रूप में प्रसिद्ध है। पष्ठी प्राचारदिनकर में षष्ठी देवी का वर्ण श्याम और वाहन नर बताया है । षष्ठी का निवाम पाम्रवन में होता है। वह कदम्बवनों में विहार करती है । उसके दो पुत्र उसके माथ रहते है । कामचाण्डाली मल्लिपेण ने कामचाण्डालीकल्प में इस तांत्रिक देवी के रूप का विचार किया है । वह कृष्णवर्णा, निर्वस्त्रा, मुक्त केशा, मर्वाभरणभूषिता और चतुर्भुजा है । उसके प्रायुध फलक, कलश, शाल्मलिदण्ड और सपं है । सर्व एव हि जनानां प्रमाणं लौकिको विधिः । यत्र सम्यक्त्वहानिर्न यत्र न व्रतदूषणम् ।। १. उदय ३३, पन्ना १३
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy