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________________ शासन यक्षियां ८६ वाहन भी भिन्न भिन्न हैं । वज्रशृखला हंसवाहना है पर काली पद्मासना । भुजाएं दोनों की चार ही हैं । अपराजितपच्छा में उनके प्रायुध नागपाश अक्षसूत्र,फलक (ढाल ) और वरद बनाये गये हैं जबकि दिगम्बर ग्रन्थ फलक के स्थान पर फल कहते है ' जो ठीक जान पड़ता है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार कालिका के दायें हाथों में वरद और पाश तथा बायें हाथों में नाग पोर अंकुश हुप्रा करते हैं । पुरुष दत्ता महाकाली पंचम तीर्थकर सुमतिनाथ की शासनदेवी का नाम दिगम्बर पुरुषदत्ता और श्वेताम्बर महाकाली बताते है । वसुनन्दि ने पुरुषदत्ता का अपर नाम संसारी देवी कहा है । प्राशाधर ने खङ्गवरा और मोहनी नामो का प्रयोग किया है । अपराजिनपृच्छा में नरदत्ता नाम है । तिलोयपण्णत्ती में पंचम स्थान वज्राकुशा का है और पुरुष दत्ता सप्तम स्थान पर है। पुरुपदत्ता और महाकाली, दोनों का वर्ण स्वर्ण के समान पीत है । पुरुष. दत्ता गजवाहना है और महाकाली पद्मासना । दोनों ही रूप में यक्षी चतुर्भुजा है। पुरुपदत्ता के दायें हाथों में चक्र और वरद तथा बायें हाथों में वज्र और फल होते हैं।' महाकाली के दायें हाथों में वरद और पाश तथा बायें हाथों में मातुलिंग और अंकुश बताये गये हैं।" मनोवेगा/ अच्युता उठे तीर्थकर पदमप्रम की यक्षी का नाम अमिधान-चिन्तामणि में श्यामा कहा गया है किन्तु हेमचन्द्र के ही त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में वह अच्युता है । सामान्यतया दिगम्बरों के अनुसार मनोवेगा और श्वेताम्बरों के अनुसार अच्युता छठे तीर्थकर की यक्षी है । वमुनन्दि ने मनोवेगा का अपर नाम मोहिनी भी बताया है। - १. वमुनन्दि, प्राशाधर और नेमिचन्द्र आदि । २. निर्वाणकलिका, प्राचारदिनकर, अमरकाव्य और त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र। ३. प्रतिष्ठातिलक,पृष्ठ ३४२; प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१६०; प्रतिष्ठासार संग्रह, ५/२४-२५ ४. निर्वाणकलिका, पन्ना ३५; प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७७; अमरकाव्य, सुमतिचरित्र, १९-२० प्रादि ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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