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जैन प्रतिमा विज्ञान
श्वेताम्बरो की अजितबला के दाये हाथों में वरद और पाश तथा बाये हायो मे बीजपूर और अंकुश होते हैं ।' प्राप्ति दुरिमारि
तृतीय नीर्थकर मंभवनाथ जी की यक्षी का नाम दिगम्बरों के अनुमार प्रज्ञप्ति प्रोर श्वेताम्बरो के अनुसार दुरिनारि है । अपगजिन पृच्छा मे इमे प्रज्ञा कहा गया है जबकि वमुनन्दि ने इम यक्षी का पर्याय नाम नम्रा भी बताया है। प्रज्ञप्ति विद्यादेवियों में भी द्वितीय स्थान पर है । वसुनन्दि के मिवाय अन्य सभी ग्रन्थकार इम यक्षी को गौर वर्ण कहते है । वमुनन्दि के अनुमार वह स्वर्ण वर्ग की है। दिगम्बरो ने प्रज्ञप्ति को पक्षिवाहना किन्तु श्वेताम्बरो ने दुरितारि को मेषवाहनगामिनी माना है, केवल ग्राचारदिनकर मे उमे छागवाहना बताया गया है। प्राप्ति पड्भजा है किन्तु दुरितारि चतुर्भुजा । अपराजिनपच्छा मे षड्भजा का उल्लेख है । वसुनन्दि, पाशाधर और नेमिचन्द्र ने देवी की छह भुजाप्रो मे क्रमश अर्धचन्द्र, परशु, फल, तलवार, कमनु और वरद ये आयुध बनाये है ।२ अपराजितपृच्छाकार की सूची भिन्न प्रकार की है । तदनुमार, अभय, वरद, फन, चन्द्र, परशु, और कमल, इन प्रायुधो का विधान है । श्वेताम्बर प्रन्यो में में निर्वाणकलिका और प्राचारदिनकर मे दाये हाथा मे वरद और अक्षसूत्र तथा बाये हाथो में अभय और फल का विधान है। किन्तु विषष्टिशलाकापुरुषचरित्र और अमरकाव्य में फल के स्थान पर सप का उल्लेख किया गया है । वज्र खला कालिका
चतुर्थ तीर्थकर अभिनन्दननाथ को यक्षी का नाम अपराजितपच्छा में वजशृखला है । वही नाम दिगम्बर परम्पग मे भी मिलता है किन्तु श्वेताम्बरो में काली या कालिका नाम को देवी नृतीय तीर्थकर को शासन देवता है । वमुनन्दि ने वजशृखला का पर्याय नाम दुरितारि बताया है जो संभवत: भूल है । वजशृखला का वर्ण साने जैसा है किन्तु कालिका काले वर्ण की है । दोनो के
१. निर्वाण कलिका, पन्ना ३४; प्राचारदिनकर, उदय ३३ पन्ना १७६ । २. प्रतिष्ठासार संग्रह, ५/२०; प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१५८ प्रौर नेमिचन्द्र पृष्ठ
३४१ । ३. निर्वाणकलिका, पन्ना ३४; प्राचारदिनकर,उदय ३३, पन्ना १७६ । निर्वाण
कलिका में प्रक्षमूत्र के स्थान पर मुक्तामाला बतायी गयी है।