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सोग हो । गो० ॥ कर्म नहीं काया नहीं, नदी वि या रस योग हो । गौ० ॥ शि० ॥ ए ॥ शब्द रूप रम गंध नहीं, नहीं फरस नहीं वेद हो । गौ० ॥ बाजे नहीं चाले नहीं, मौनपणुं नहीं खेद हो । गो० ॥ ॥ शि० ॥ १० ॥ गाम नगर तिहां कोई नहीं, नहीं वसती न उजाड हो । गौ० ॥ काल सुगाल बने नहीं, रात दिवस तिथि वार हो । गौ० ॥ शि० ॥ ॥ ११ ॥ राजा नहीं पर जा नहीं, नहीं ठाकुर नहीं दास हो । गौ ॥ मुकिमा गुरु चेला नहीं, नहीं लघु वडाई तास हो ॥ गो० ॥ शि० ॥ १२ ॥ अनंता सुखम जीली रह्या, रूपी ज्योति प्रकाश हो । गो० ॥ सतु कोईनें सुख सारीखां, सघलानें अविचल बाम हो । गौ० ॥ शि० ॥ १३ ॥ अनंत सि६ मुगत गया, वली अनंता जाय हो । गौ० ॥ अवर जग्या रुंधे नही, ज्योतिमां ज्योति समाय हो । गौ० ॥ शि० ॥ १४ ॥ केवल ज्ञान सहित बे, केवल दर्शन खास हो || गौ० ॥ खायक समकित दीपतुं कदीय न होवे उदास हो । गौ० ॥ शि० ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरूप जे उलखे, आणी मन वैराग हो । गौ० ॥ शिवसुंदरी वेगें वरे, नय कहें सुख प्रयाग हो ॥ गौ० ॥ शिव० ॥ १६ ॥ इति श्री सिद्धस्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ पंचतीर्थनी यारति लिख्यते ॥
॥ पेहेली प्रारती प्रथम जिणंदा, शेत्रुंजा मंम पण कषन जिणंदा ॥ श्रीसिद्धाचल तीर्थे याव्या, पूर्व