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(२५) नवाणुं नविक मन जाव्या ॥ आरती कीजें श्रीजि नवरकी ॥ १ ॥ उसरी भारती शांति जिणंदकी, शांति करे प्रनु शिव मारगकी॥ पारेवो जिरो शर णे राख्यो, केवल पामीने धर्म प्रकाश्यो । प्रा० ॥ २ ॥ तीसरी मरती श्रीनेमनाथ, राजुल नारी तारी निज हाथ ॥ सहस पुरुषगुं संयम लीधो, करी नि ज प्रातम कारज सीधो ॥ आ ॥३॥ चोथी आरति चिहुँ गति वारी, पारसनाथ नविक हितका री॥ गोडी पास शंखेश्वरो पास. नविजनन। पूरे मन याश ॥ था० ॥४॥ पांचमी आरती श्रीमहावीर, मेरु परें.म रह्या धीर ॥ साडा बार वरस तप तपीया, कर्म खपावीने शिव पुर वसिया ॥ आ॥ ॥ ५ ॥ इणि परें प्रनुजीनी आरती करतो, शुन परिणामे शिवपुर वरशे ॥ इणि परें जिनजी नी आरती गावे, गुन परिणामें शिवपुर जावे ॥ आ० ॥ ६ ॥ कर जोडी सेवक इम बोले, नहीं कोई माहारा जिनजीने तोले ॥ श्रा० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ चार मंगल ॥ ॥ आज घरे नाथ पधास्या, कीजें मंगल चार ॥ आ० ॥ पहिले मंगल प्रनुजीने पूजें, घसी केसर घ नसार ॥ श्रा० ॥१॥ बीजे मंगल अगर नखे,, कंठे ठq फूल हार ॥ श्रा० ॥ त्रीजे मंगल आर तो उतारूं, घंट वजावं रणकार ॥ था० ॥ २ ॥ चोथे मंगल प्रमुगुण गाऊं ॥ नाटक थर थर कार