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(२३) व जव आधार के ॥ नव० ॥ ५ ॥ इति ॥ ५ ॥
॥ अथ सिहपद स्तवनं ॥ ॥ श्रीगौतम एना करे, विन। करी शीश नमाय प्रनुजी ॥ अविचल स्थानक रे सुण्यं, कृपा करी मोय बताय प्रचुजी ॥ शिवपुर न. सोहामणुं ॥१॥ ए अांकणी ॥ आठ कर्म अलगां करी, सास्यां आतम काम हो ॥प्र० ॥ बूटा संसारनां पुःखथकी, तेणे रहे वार्नु किहां ठाम हो ॥ प्र॥ शि॥॥ वीर कहे ऊर्ध्व लोकमां, सिह शिलातणुं गम हो गौतम ॥ स्वर्ग बचाशनी नपरें, तेहनां बारे नाम हो ॥ गौ०॥ शि॥३॥लाख पिस्तालीश जोजना, लांबी पोहोली जाण हो॥ गौ ॥ आठ जोजन जाडी विचं, बेडे मंख पंख ज्यं जाश हो ॥ गौ॥ शि॥ ४ ॥ उज्ज्वल हार मोती तामो, गोमुग्धशंख वखाण हो॥ गौ ॥ ते थकी कजली अति घणी, ननट उत्र संठाण हो ॥ गो० ॥ शि० ॥ ५ ॥ अर्जुन स्वर्णसम दीपती, गठारी मठारी जाण हो । गौ० ॥ फटक रत्न थकी निर्मली, सुंधाली अत्यंत वरवाण हो ॥गौ॥ शि॥ ॥ ६ ॥ सिमशिला उलंघी गया, अधर रह्या सिम राज हो ॥ गौ० ॥ अलोकगुं जाई अड्या, सायां प्रातम काज हो ॥ गौ० ॥ शि० ॥ ७ ॥ जन्म नहीं मरण नहीं, नहीं जरा नहीं रोग हो ॥ गौ० ॥ वैरी नहीं मित्रज नहीं, नहीं संजोग विजोग हो ॥ गौ ॥ शिक || G ॥ नूरख नहीं तरषा नहीं, नहीं हर्ष नहीं