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(२२) चन सुधारस पनका ॥ बलिहारी नवपद ध्यान ॥ १ ॥ नवपद सवे नवमे स्वर्गे, पावत दि विमा नकी ॥ब० ॥ २ ॥ याकी महिमा वचन हमकुं,जे में जसोदा कानकी ॥ब० ॥३॥ पावे रूप सरू प मदनसो, देही वपन वानकी ॥ ब० ॥ ४ । याको ध्यान हृदय जय आवत, नपजत लदेगी। नकी ॥ब० ॥ ५॥ समकित ज्योति होवे दल नी तर, जेसें लोकनमें जानकी ॥ब॥६॥ जिनं झान विनोद प्रसंगें, नक्ति करो नगवानकी ॥ ॥ ७ ॥
॥अथ नः म स्तवनं ॥ ॥ पूज्य पधारो मरुदेशे ॥ ए देशी॥ ॥ नवपद महिमा सांजलो, वीर नांखे हो सुणो पर्षदा बार के ॥ ए सरीखो जग को नहीं, यारा ध्यो हो शिवपद दातार के ॥ न ॥१॥ नद ली आंबिल तणी, नवी करीये हो मनने मनास के ॥ नू मी शयन ब्रह्म व्रत धरो, नित सुपीयें हो श्रीपालनो रास के॥ न ॥२॥ नव विधि पूर्वक तप करी, क जमगुं दो कीजें विस्तार के ॥ साहामी सामिणी पोपियें, जेम लहीयें हो नवनो निस्तार के ॥ ॥ न ॥३॥नरसुख सुरसुख पामीयें, वली पामे हो नव जव जिनधर्म के ॥ अनुक्रमें शिवपद पण लहे. जिहां मोहोटां हो अक्ष्य सुख शर्म के ॥न ॥४॥ सांजली नवियण दिल धरो, सुखदायी हो नव पद अधिका र के ॥ वचन विनोद जिनेंनो, मुज होजो हो न