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( ६३१ )
जय मरणरो, दाखवीयो फल शास्त्रे खरो ॥ ११ ॥ कलह फुरके दुवे तेहवे, लान जोग जसु फुरके खवे ॥ कारख फुरके होवे धन हाण, वात कही बे एहवी पुरा ण ॥ १२ ॥ पसवाडा करके जिन जिसे, वन वात सुणावे तसे || पूंठ फुरके तो वयरी मरे, काज सर्वी घर बेठां सरे ॥ १३ ॥ बांह फुरके प्रिय जो मले, कुं ही फुरके जयपद भजे ॥ कर फुरके टाले आपदा, फुरके हथेली दीये संपदा ॥ १४ ॥ पोहोचे फुरके चितारे मित्त, अथवा किंपि वधारे प्रीत ॥ प्रांगुली या पण तेह विचार, नख फुरके वयरी जयकार ॥ १५ ॥ ही ये फुरके लान प्रमाण, या फुरके वि शेष तसु जाए । पेट फुरके वाधे तसु जंकार, ना नि फुरके पाय विहार ॥ १६ ॥ श्रासन फुरके स्त्री संतान, एवं सुणीयें लौकिक ज्ञान ॥ ढीचण फुरके हरख निधान, अथवा पदवी लहे परधान ॥ १७ ॥ गुह्य फुरकतां रमणीरंग, पामे निर्श्वे उत्तम संग ॥ कटि यें फुरके पहेरे वस्त्र, साथल फुरके बंधन शस्त्र ॥ १८ ॥ गूमे फुरके वाहण चडे, जंघा फुरके पंथे खडे ॥ गी री फुरके संपदा वघे, अथवा केइ अचिंतित सधे ॥ ॥ १५ ॥ पग उपर झुरके धन होय, पग तलीये सवि शेषो जोय ॥ पग यांगुलीयें जिसें फुर फुरे, तव जीष्ट घर आवी नरे ॥ २० ॥ पुरुष अंगुल लीजें जिमलो, वाम यांगुल फल नारी तणो ॥ तुरत फल आपे सुनगने, मध्यम फल थापे वीहिवने