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(६३३) ॥१॥ दिवस तणुं फल बोल्युं कमें, वली विपरीत कडं निशि समे ॥ ब्रह्मचारी ने बाल कुमार, राजा प्रमुख फलापति सार ॥ ॥ संवत नंद लवण र स चंद, दसराह दिन महिमाणेद ॥ कही वात तन फरकन तणी, आगम वाणी जिसि गुरु नणी॥२॥ ॥ इति अंग फुरकन विचार मद्याय समाप्त ॥ बींक विचार स्वाध्याय प्रारंनः ॥ देशी चोपानी॥
॥ठीक शुकननो कहुँ विचार, सुगुरु समीप सुण्यो में सार॥ आगलमां जो बींकज होय,अशुन तणी जाणे जे कोय ॥ १ ॥ पहेला गुकन दुखांगुन घणां, बींक दुध निःफल तेह तणां ॥बींकज दूया पडी जे जाण, झुकन दुयां ते करो प्रमाण ॥ २ ॥माबी बींक होय अफल कहे, जमणी बींक बुरी सदु कहे ॥
ठे बींक सुखदायक सही, घणी बीक ते निःफलक ही॥३॥ हांसे नय नपाधियें करी, हठ घणो मन मांहे धरी ॥ एह बींक ते निःफल जाण, कुतर बींक तो निःवर प्राण ॥॥मंजार डींक ते मराज करे, इसी बींक कष्टकारी सरे ॥ वस्तु वेचतां बीकज होय, आण्युं कियामोधू होय ॥ ५ ॥ वस्तु लेता बींकज होय, बमणो लान सघतानो जोय ॥गश्वस्तु जो जोवा जाय, बीक होय तो लान न थाय ॥६॥ नवां वस्त्र वली पहेरतां, बींक होये आगल अण बतां ॥ जोजन होम पूजानुं काम, मंगलिक जे धर्म सुगम ॥ ७ ॥ काम एटला कीधानी अंत, वली