________________
(५४३) श्रवनो आगार, अनंत दारुण कुःख अने जयनो देवा वालो, महोटा सावध व्यापार कुवाणिज्य कुकर्मादा ननो करावनारो, अध्रुव, अनित्य, अशाश्वतो, असा र, अत्राण, अशरण, एवो जे आरंन अने परिग्रह तेने दुं केवारें बांझीश जे दिवसें बांमिश, ते दिवस महारो धन्य ! ॥ ए प्रथम मनोरथ ॥
२ केवारें हूं मुंम थइने दश प्रकारे यतिधर्म धारी, नववाडें विशु६ ब्रह्मचारी, सर्व सावद्य परिहारी, एणगारना सत्तावीश गुणधारी, पांच समिति त्रण गु प्तियें विशुद्धविहारी, मोहोटा अनियहनो धारी, बे हेंतालीश दोष रहित विशुद्ध आहारी, सत्तर ने संय म धारी, बार ने तपस्याकारी, अंत आहारी, प्रांत
आहारी, अरस आहारी, विरस बाहारी, लुरक आ हारी, तुब थाहारी, अंतजीवी, प्रांतजीवी, अरसजी वी, विरसजीवी, सुरकजीवी, तुबजीवी, सर्व रस त्या गी, बकायनो दयाल, निर्लोनी, निःस्वादी, पंखी तु व्य, वायरानी परें अप्रतिबंध विहारी, वीतरागनी या झासहित, एहवा गुणोनो धारक जे अणगार ते ढुं केवारें थश्श! जे दिवस हुँ पूर्वोक्त गुणवान थाइश ते दिवस धन्य ॥ए बीजो मनोरथ ॥ ____३ केवारें दुं सर्व पापस्थानक आलोई, निःशल्य थश, सर्व जीवराशी खमावीने, सर्व व्रत संनारीने, य ढार पापस्थानकथी त्रिविधं त्रिविधं वोसरीने, चारे आहार पञ्चरकीने, शरीरने, नेहेले श्वासो
सिवास