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(५४२) ॥ किवारें हूं, बाह्य तथा अन्यंतर परिग्रह जे माहापापर्नु मूल उर्गतिने वधारनारो, काम, क्रोध, मान, माया, लोन. विषय अने कषायनो स्वामी, माहाकुःखनुं कारण, महा अनर्थकारी, उर्गतिनी शि ला, माठी लेश्यानो परिणामी, अज्ञान, मोह, मत्स र, राग अने षनुं मूल, दशविध यति धर्म रूप कल्प वृदनो दावानल, झान, क्रिया, दमा, दया, सत्य, संतोष तथा बोधबीज रूप समकेतनो नाश करनारो, संयम अने ब्रह्मचर्यनो घात करनारो, कुमति तथा कुबुद्धिरूप सुःखदारिनो देवा वालो, सुमति अने सुबुदिरूप सुखसोजाग्यनो नाश करनारो, तप संय म रूप धनने लूंटनारो, लोन क्वेश रूप समुश्नो व धारनारो, जन्म जरा अने मरणनो देवावालो, कप टनो नंमार, मिथ्यात्व दर्शन रूप शल्यनो नरेलो, मो दमार्गनो विघ्नकारी, कडवा कर्म विपाकनो देवावा लो, अनंत संसारनो वधारनारो, महा पापी, पांच इंडियना विषयरूप वैरीनी पुष्टिनो करनारो, मोहो टी चिंता शोक गारव अने खेदनो करनार, संसार रूप अगाध वनिनो सिंचवावालो, कूड कपट बने क्ले शनो आगार,मोहोटा खेदनो करावनारो,मंदबुदिनो आदस्यो, उत्तम साधु निर्यथोयें जेने निंद्यो ने, अने सर्व लोकमां सर्व जीवोने एना सरिखो बीजो कोई विषम नथी, मोहरूप पाशनो प्रतिबंधक, श्लोक तथा परलोकना सुखनो नाश करनार, पांच आ