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(५४४) रावीने, त्रण आराधना आराधतो घको, चार मंग लिक रूप चार शरण मुखें उच्चरतो थको, सर्व संसा रने पूंठ देतो थको, एक अरिहंत, बीजा सिह,त्री जा साधु, अने चोथो केवलि प्ररूपितधर्म, तेने ध्याव तो थको, शरीरनी ममता रक्षित थयो थको, पादोप गमन संथारा सहित, पांच अतिचार टालतो थको, मरणने अणवांबतो थको. एह पंमित मरण यंत काले मुझने कराविश ॥ ए बीजो मनोरथ ॥३॥ ___एत्रण मनोरथने श्रावक, मन,वचन यने कायायें करी शुक्षपणे ध्यावतो थको सर्व कर्म निर्जरीने संसा रनो अंत करे, मोदरूप शाश्वत स्थानक प्रत्यं पामे॥ ॥अथ वसंत धमाल वगेरे होरीमा गावानां पद
प्रारंन ॥ तत्र प्रथम वसंत ॥ ॥ए ऋतु रूडी रुडी माहारा वाला, रूडो मास वसंत ॥ रूडो समकित केसू फूल्यो, गुंफत मधुकर संत माहारा वाला ॥ ए० ॥ १ ॥ संवेग रंग पखाव ज बाजे, उविध दया कर नाल ॥ उपशम जर पिच कारी मारी, नवनिरवेद्य गुलाल माहारा वाला ॥ ॥ए॥२॥ आस्तिक आप सुबागमें बेते, खेलत खे ल रसाल ॥ ज्ञान नद्योत प्रनु फगुवा मांगत, दीजें शांति कृपाल माहारा वाला ॥ ए० ॥३॥ इति ॥
॥धमाल॥ ॥सुमति सदा सुख दाई हो, खेलन आई दोरी॥ खेलन थाई प्यारे खेलन आई ॥ सुमति ॥ ए टे