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(५१५) ॥ श्री० ॥ कारण जाव परंपर सेवन, प्रगटे कारज नावो जी॥कारज सिमें कारणता व्यय, शुचि परिणा मिक नावो जी ॥ १० ॥ श्री० ॥ परम गुणी सेवन तन्मयता, निश्चय ध्याने ध्यावे जी॥ शुभातम अनु नव आस्वादी, देवचं पद पावे जी॥११॥ श्री॥
॥ अथ नवम श्रीसुविधिजिनस्तवनं ॥ ॥ थारा महेला ऊपर मेह, फरूखे वीजली ॥
॥हो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ दीठो सुविधि जिणंद, समाधिरसें नस्यो होला ल ॥ समाधिरसें नयो ॥ नास्युं आत्मस्वरूप, अना दिनो वीसयो हो लाल ॥ अ० ॥सकल विनाव नपा धि, थकी मन उसस्यो हो लाल ॥ थ० ॥ सत्ता सा धन मार्ग, नणी ए संचयो हो लाल ॥॥१॥ तुम प्रनु जाएंग रीति, संरव जग देखता हो लाल ॥ स० ॥ निज सत्तायें शुरू, सदुने लेखता हो लाल ॥ स० ॥ पर परिणति अप,पणे नवेखता हो लाल॥ पणें ॥ जोग्यपणे निज शक्ति, अनंत गवेखता हो साल ॥अ० ॥ २ ॥ दानादिक निज नाव, हता जे परवशा हो लाल ॥ हता० ॥ ते निजसंमुख नाव, ग्रही लही तुज दशा हो लाल ॥ ग्र० ॥ प्रनुनो अञ्ज त योग, स्वरूप तणी रसा हो लाल ॥ स्व० ॥ नासे वासे तास, जास गुण तुज जिसा हो लाल ॥ जाण ॥३॥ मोहादिकनी चूमि, अनादिनी ऊतरे हो लाल ॥ अ० ॥ अमल अवंम अलिप्त, स्वनावज सांजरे