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॥ अथ अष्टम श्रीचं प्रनजिनस्तवनं ॥ ॥ श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीचं प्रन जिनपदसेवा, हेवायें जे हलिया जी ॥ श्रातम गुण अनुभवथी मलिया, ते जवजयथी टलिया जी ॥ १ ॥ श्री० ॥ इव्य सेव वंदन नम नादिक, अर्चन वलि गुरुग्रामो जी ॥ नाव नेद थावानी ईहा, परजावें निःकामो जी ॥ श्री० ॥ २ ॥ ॥ श्री० ॥ जावसेव अपवादें नेगम, प्रनुगुणने संकल्पें जी ॥ संग्रह सत्ता तुल्यारोपें, नेदानेद वि कल्पें जी ॥ ३ ॥ श्री० ॥ व्यवहारें बहु मान ज्ञान निज, चरणे जिनगुणरमणा जी ॥ प्रभु गुण या लंबी परिणामें, ऋजु पद ध्यानस्मरणा जी ॥ ४ ॥ ॥ श्री० ॥ शब्दे शुक्लध्यानारोहण, समनिरूढ गुण दशमे जी ॥ बी शुकल विकल्प एकत्वें, एवंनूत ते ममें जी ॥ ५ ॥ श्री० ॥ उत्सर्गे समकित गुण प्रगट्यो, नैगम प्रभुता श्रंशें जी ॥ संग्रह श्रातम सत्तालंबी, मुनिपद जाव प्रशंसे जी ॥ ६ ॥ श्री० ॥
जुसूत्रे जे श्रेणिपदस्यें, आतमशक्ति प्रकाशे जी ॥ यथाख्यात पद शब्द स्वरूपें शुद्ध धर्म उल्लासे जी ॥ ॥ ७ ॥ श्री० ॥ नाव सयोगि प्रयोग शैलेसें, अंति म डुग नय जाणो जी ॥ साधनतायें निज गुणव्यक्ति, तेह सेवना वखाणो जी ॥ ८ ॥ श्री ॥ कारण नाव तेह अपवादे, कार्यरूप उत्सर्गे जी ॥ श्रात्मजाव ते नाव इव्य पद, बाह्य प्रवृत्ति निसर्गे जी ॥ ए ॥