________________
(५१६) हो लाल ॥ स्व०॥ तत्त्व रमण शुचि ध्यान, नणीजे
आदरे हो लाल॥न ॥ ते समतारस धाम, स्वामी मुज्ञा वरे हो साल ॥ स्वा० ॥४॥प्रनु नो त्रिनुवन नाथ, दास हुँ ताहरो हो लाल ॥ दा० ॥ करुणानिधि अनिलाख, अडे मुफ एरो हो लाल ॥ 7 ॥ आ तम वस्तु स्वनाव, सदा मुऊसाजरो हो लालसि॥ नासन वासन एह, चरगव्याने धरो हो लाल ॥ च ॥ ५ ॥प्रनु मुझने योग, प्रनु प्रनुता लखे हो नाल ॥ प्र० ॥ इव्य तणे साधम्य, स्वसंपति उलखे हो जान॥ स्व० ॥ लवतां बहुमान. सहित रुचि पण वधे हो लाल ॥ स ॥ रुचि अनुयायी वीर्य, चरण धारा सधे हो लाल॥च॥६॥ दायोएशमिक गुण सर्व, थया तु ऊ गुण रसी हो लाल ॥२०॥ सत्ता साधन शक्ति. व्य क्तता ननसी हो लाल ॥ व्यं० ॥ हवे संपूरण सिह, तणीशी वार ने हो लाल॥त॥ देवचं जिनराज, जगत आधार उ होलान ॥ जग ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ दशम श्रीशीतलजिनस्तवनं ॥ ॥ आदर जीव मागुण आदर ॥ ए देशी ॥
॥ शीतलजिनपति प्रजुता प्रनुनी, मुफथी कहिय न जाय जी ॥ अनंतता निर्मलता पूरणता, ज्ञान वि ना न जणाय जी॥१॥शी ॥ चरम जलधि जल मिणे अंजली, गति कींपे अति वाय जी ॥ सर्व श्रा काश उलंघे चरणे, पण प्रनुता न गणाय जी ॥ ।। २ ॥ शी० ॥ सर्व इव्य प्रदेश अनंता, तेहथी गु