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(५०३) वना, प्रनुजी चादं दरिस देदार ॥ सं० ॥ साहेबा दीपविजय कहे दीजिये,प्रनुजी तुम दरिसन सुखकार ॥ सं० ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीनेमनाथनी स्वाध्याय ॥
॥साते वारनी देशीमां ॥ ॥ तोरण आवी कंत, पाबावलिया रे ॥ मुफ फर के दाहिण अंग, तेणें अटल लिया रे॥१॥ कुण जो शीयं जोया जोप, चुगल कुए मनिया रे ॥ कुण अव गुण दीठा आज, जिणथी टलिया रे ॥ २ ॥जा जा उरे सहियरो दूर, शाने डो रे ॥ पातलीयो श्यामल वान,वालिम तेडो रे ॥ ३ ॥ यादव कुल तिलक समा न,एम न कीजें रे॥ एक हांसुं ने बीजी हाण,केम खमी जे रे ॥४॥ इहां वाये जाजो समीर,वीज बुकेरे ॥बाप यो पीन पोकारे, हैयंडं चमके रे ॥ ५ ॥ मर पावे दाउर सोर,नदीयो माती रे॥धन गरिवने जोर,फाटे बाती रे॥६॥हरितांगुक पहेस्यां नूमि,नवरस रंगें रे।वा वलीया नवरस हार,प्रीतम संगें रे॥७॥में पूरण कीधां पाप, तापें दाधी रे ॥ पडे आंसुधार विषादें, वेलडी वाधीरे ॥ ॥ मुने चडावी मेरु शीश, पाडी हेठी रे ॥ केम सहेवाये महाराज, विरह अंगीठी रे ॥॥ मुने परणी प्राण आधार, संयम लेजो रे ॥हुँ पतिव्र ता ढुं स्वामी, साथें वहेजो रे ॥ १० ॥ श्म आवे न वनीप्रीत, पिनडा वलशे रे। मुज मनना मनोरथ नाथ, पूरण फलशे रे ॥ ११ ॥ हवे चार महाव्रत सा