________________
(५०४) र, चुंदडी दीधी रे ॥ रंगीली राजुलनारें, प्रेमें लीधी रे ॥ १२ ॥ मैत्र्यादिक जावना चार, चोरी बांधी रे॥ दे ध्यानानल सलगाय, कर्म उपाधि रे ॥ १३ ॥ थ यो रत्नत्रयी कंसार, एकी नावें रे ॥आरोगे नर ने नार, गुड़ वनावें रे ॥ १४ ॥ तजी चंचलता त्रिक योग, दंपती मलियां रे॥त्र खिमाविजय जिन नेम, अनुनय कलिया रे ॥१॥
॥अथ केशरीयाजीनुं स्तवन ॥ ॥प्रनुनी मूरति माहन बेलडी, जी तुमारी मूरति मोहन वेलडी ॥ चालो सखी धुलेवे रे जश्य, प्रनुनी सामरी सूरत सेलडी ॥ जी तु० ॥१॥ केशर चंद न नयां रे कचोलां, प्रचुजीनी पूजा करूं सदु पहेलडी ॥जी तु॥२॥जाईजुई वर कमरोजी मरुवो, प्रनुजीने पूजी चडाचं चंवेलडी॥जीतु॥३॥सुर नर मुनिवर जो ने मोह्या, कांपनदास गुण वेलडी॥जीतु ॥४॥ ॥ अथ उपदेश विषे सद्याय ॥ देशी फतमलनी॥
॥ पडजो कुमतिगढना कांगरा, मर जो रान मोह राव ॥ वालो महारो निज घरे नावीयो, एणे परघरे कीधां प्रयाग ॥ वा० ॥ एम कहे सुमति सुजाण ॥ वा ॥ १ ॥ ए आंकणी॥ दांत पाडूं रे दूती त गा, पाडोसणनां रेल प्राण ॥जेणे महारो जीवन जोलव्यो, लइ नाख्यो नरकनी खाण ॥ वा० ॥ २॥ मायायें मद पाश्ने, एतो वास्यो पोताने वास ॥ मा हारोने वासो टालीने, एवं मुझने कीधी निराश ॥