________________
(४५१)
यो रे ॥ बहु० ॥ गुन मंत्र नवकार सार, उर्लन अब में पायो । मेरो मन जिनवरसुंजायो रे ॥ मेरो० ॥ कुगुरुको सब संग अशुन, मिथ्या मत बटकायो ॥ नविध जवजलसें तरनां रे ॥ इन ॥ अ ॥३॥र हो जिनवाणीमें राता रे ॥ रहो ॥ अनंत सुखकी खाण, सदा शिव मंगलकी दाता ॥ सदा जिनवर न क्ति करजो रे ॥ सदा ॥ चिन धारी हैयामें नवि तुम, पाप परां हरजो॥ अल्प जिनवरका गुण गाया रे ॥ अल्प०॥ कर जोडि जिनदास कहे, जिन नक्तिसें न्हाया ॥सदा में चाहुँ जिन चरनां रे। सदा ॥अ॥४॥
॥ अथ चोवीश दमकनुं स्तवन प्रारंनः ॥ ॥दोहा॥वंद जिन चोवीशने, तसुभाषित श्रुतनेद।। दंमक पद कही तस थुगुं, अहो नवि सुणो नमेद ॥१॥
॥ ढाल पहेली ॥ देशी जटीयाणीनी ॥ ॥ साते नरकें एक, नवनपति दस दंझक हो ॥ पुढ वी आदि पंच जाणीया, विकलेंडीना त्रण ॥ गर्नज तिरियंचने नर हो, व्यंतर जोईस वेमाणीया ॥ १ ॥
॥ ढाल बीजी ॥ ताहारा मेहेला उपर मेह,
करूखें वीजली॥हो लाल फ० ॥ ए देशी॥ ॥जीव दंमाए ज्यांहि, दमक नाम जेहनो॥ होताल ॥ दंगक० ॥ संदे लवलेश, संग्रह करूं तेहनो ॥ हो लाल ॥ संग्रह ॥ नरकादिक चोवीश, दमक पद जे लहे ॥ होलाल ॥ दंगक० ॥ दंमाये नही तेह, वाचक उदय कहे हो लाल ॥ वाच ॥१॥