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तेरी चरण सहेज पर पोढ्या, आनंद दिल आया ॥ ॥ श्रानं ॥ मेरी नगी नूख सब प्यास, सुधारस पाया ॥ मेरे शिरपर तुम शिरदार, जिनेसर राया ॥ जिने० ॥ में चाहूं चरकी सेव, सफल कर काया । अब यो दोलत दरसनकी, मेरे एहि माया ॥ मेरे० ॥ युं अर ज करे जिनदास, अलप गुन गाया || अब बुरा कु गुरु उपदेश, धरो मत काना || धरो० ॥ तुम० ॥ ४ ॥ ॥ जीवोपदेश लावणी ग्रामी ॥
सुगुरु
॥ सुगुरुकी शीख हिये धरनां रे ॥ मरापुरको पंथ सदा, श्रीजैनधर्म करनां ॥ सु० ॥ प रम परमारथ तें टाल्यो रे ॥ पर० ॥ सार जगतमें जैनधर्म, जुगती में नही पाल्यो || प्रभुको नाम नही लीनो रे ॥ प्रभु० ॥ महा हलाहल विषय विकट, मिथ्यामतसें जीनो ॥ चेतन युं बहुविध दुःख पावे रे ॥ चेत० ॥ लपट्यो लालचमांहे पांच, इंडीके सुख चावे ॥ जीव ब पाप परीहरनां रे ॥ जी० ॥ अमरा पुर० ॥ १ ॥ दया चेतनकुं सुखकारी रे ॥ दया० ॥ श्री जिनराज प्ररूपी जैसी, केसरकी क्यारी ॥ जगतमें तीर थ हे चारी रे ॥ जग ० ॥ साधु साधवी श्रावक श्राविका, दू व्रतधारी ॥ इनूंकूं कहियें ब्रह्मचारी रे ॥ इनूंं० ॥ समता संयम सार करीने, कर्म हयां जारी ॥ इनूंने मेट्या जनम मरणां रे ॥ इनूं० ॥ श्रमरा ॥ २ ॥ पं च इंडियसें लपटायो रे | पंच॥ दुःख अनंतां सह्यां रे बहुलां, प्राणी पडतायो । बहु दुर्गतिमें नमिया