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(५२) ॥ ढाल त्रीजी॥ गौतम समुश् कुमार रे ॥ ए देशी॥
॥शरीरने शरीरनुं मान रे,संघयण ने संझा,संस्थान कपाय लेश्या वली ए॥ इंश्यि ने समुद्घात रे, दृष्टि में दरिसन्न, ज्ञान अने योगावली ए॥१॥ उपयोग ने उपपात रे, चवन स्थिति पर्यापति, श्राहार ने संज्ञा त्रिक ए॥ गति आगति वेद अल्प रे, हार चोवीश ए, दमकप्रत्ये जणो नवि ए॥२॥ ॥हार पहेलुंढाल चोथीसिक्ष्चक्र पदविंदो एदेशी।
॥गर्नज तिर्यच वानकाय ने, शरीर कह्यां ने चा र ॥ोदारिक वैक्रिय तैजस कार्मण, नर ने पांच नि रधार रे, श्रोता क्षार एणी परें जाणो ॥ बीजा सर्वेने त्रण जाणो,यागम मनमां बायो रे ॥श्रोताहा॥१॥ ॥हार बोर्जु॥ ढाल पांचम ॥सोरठी चालमा वनस्प ति विण थावर चार, तनु जघनोत्कृष्ट विचार ॥ अंगु लनो असंख्यातमो नाग, वदे मान एहवं वीतराग ॥ ॥१॥ बीजे पण दंमक वीशे, जघन्य एमज कह्यो जगदीशे ॥ उत्कष्टुं कहुँ हवे आगें, धनुष पांचशे ना रकी नागें ॥३॥ सुरने सात हाथ वखाएं, जोयण सहस गर्नज तिरिय जाणुं ।। वनस्पतिने जाजेलं,त्र ए गान नर तेंहि नजेरूं ॥ ३ ॥ बेंडी चौरिदि बार एक, जोयण जाणो सुविवेक ॥ देह उंचपणे ए न णियो, वैक्रिय सूत्रे श्म थुणियो ॥४॥ अंगुलनो असं ख्यातमो नाग, प्रारंन समय लहो लाग ॥ सुर नरने साधिक लाख, जोयण नवशे तिरिय सुनाख ॥ ५॥