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(२७) धारो चित्तमें जेह के, जवि जन एकमना ॥ ६॥श्रा हार शरीरने इंडिय, श्वास वचन सही॥ मननी बही जाण, एकेश्यि चन कदी ॥ बिति चौरिंख्यि अस नी,ने होये पंच ए॥ पट् सन्नी ने जाणवी, विशेष कहे संच ए॥ ७ ॥
॥दोहा॥ जीव तत्त परण थयुं, हवे अजीव वि चार ॥ निन्न निन्न करीने कद्, सांजलजो नर ना ॥॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥वीरजीने वचनें र अमृत रस ऊरे र॥ए देद।।।
॥ धर्मास्तिकाय खंध देश प्रदेश के रे, नेम अधर्मा स्तिकाय ॥ एहना पण ए त्रण नेदज कह्या रे, एम
आकाशना त्रण थाय ॥ नवि तुमें जाणो रे अजीव न त्वना रे॥ए अांकणी॥१॥ एत्रनामली नव नेद सुंदरू रे, दशमो नेद डे काल ॥ खंध देश प्रदेश प्रमा पुन रे, अजीवना चौद कह्या सुविशाल ॥ नवि० ॥ ॥ २ ॥ धर्मास्ति अधर्मास्ति पुजला रे, आकाश काल सुविहाण ॥ ए पांचे अजीव ते जिन कह्या रे, कह्या कह्या त्रिनुवन जाण ॥ नवि० ॥३॥ चलण स्वनाव धर्मास्तिकायमां रे, अधर्मास्ति थिर गण॥अवकाश
आपे पुजप्त जीवने रे, हवे पुजलना चार विनाण ॥ नविण ॥४॥ खंध देश प्रदेश प्रमाणुन रे, पुजलना ए चार नेव ॥ हवे आवलिका नेद तुमें लहो रे, श्र संख्य समय एक आवलि मेव ॥ नवि०॥ ५॥ एक को डीने सडस लाख के रे, उपर सीतोत्तर सहस्सज जो