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( ए) य॥बरों ने शोल बावलिका कही रे, एटली आवलि यें एक मुहर्त होय ॥नवि०॥६॥त्रीश मुहूर्ते दिवस रात्रि कही रे. पंदर अहोरात्र एकज पद ॥बे पदें ए कमासज नावियें रे, बार मासें एक वर्षज दद॥ नविन ॥ ७ ॥ एहवं वरसें हवे पूर्व कहुं रे, सितेर लाख को डी वरसज जाय ॥ बपन्न स स कोडी वरस मान कहूं रे, पूर्व एटले वरसें थाय ॥ नवि ॥॥ असंख्या त पूरवें एक पत्य जाणीयें रे, दश कोडा कोडी पल्ये सागर एक ॥ सागर दश कोडाकोड। उत्सर्पिणी रे, अवसर्पिणी कोडाकोडी दश बेक ॥ नवि० ॥ ए॥ वीश कोडाकोडी सागरें काल चक ने रे, काल अनंतें पुजल परावर्त जाण ॥ मुंगर गुरुना पद गुन ध्यानथी रे, नित्य नित्य विवेक लहे कल्याण ॥ नवि० ॥१०॥
॥ दोहा ॥ पुण्य तत्त्व तणा कहुँ, नेद बहेंतालीश जेह ॥ एकमना थश्सांनलो,आणी अधिको नेह ॥१॥ ॥ ढाल चोथी॥ साहेबजी श्रीविमलाचल ॥
॥नेटीयें हो लाल ॥ ए देशी॥ ॥ बहेंतालीश नेद पुण्य तत्त्वना हो लाल, शाता वेदनी नंच गोत्र ॥ साहेबजी ॥ मनुष्यगति मनुष्यानु पूर्वी हो लाल, चार नेद ए युक्त ॥ सा ॥ पुण्य तत्त्व हवे सांजलो हो लाल ॥ ए आंकणी ॥१॥ साहे बजी सुरजग पंचेंशियपणुं हो लाल, पांच देह मनो हार ॥ सा० ॥ औदारिक वैक्रिय आहारकें हो लाल, अंगोपांगें युक्त धार ॥ सा ॥ पु० ॥ ॥