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॥ ढाल बही ॥ नंदनं त्रिसला दुलरावे ॥ ए देशी ॥ ॥ दश प्रकारें जवनपति कहीयें, व्यंतर यात प्र कारो रे || ज्योतिषी पांच प्रकारें सुणजो, दोय विमा निक सारो रे || दश० ॥ ४७ ॥ असुर कुमार साधि क एक सागर, सात हाथ तस काय रे ॥ देशें कणा दोय पल्योपम, नव निकाय कहेवाय रे ॥ दश० ॥ ॥ ४८ ॥ लाख सहस वरस एक पल्योपम, चंद सु र्य विचार रे | व्यंतर त्र्यायु एक पल्योपम, तनु सम
सुर कुमार रे ॥ दश० ॥ ४५ ॥ नारकी जवन प ति ने व्यंतर, दश सहस वरस जघन्य रे || ज्योतिषी पव्योपम ड जागें, पत्योपम विमान रे ॥ दश० ॥ ॥ ५० ॥ युग्म सौधर्मने ईशानें, इहांथी होय एक राजे रे ॥ सागर वे बीजे वे जाजा, सात हाथ वि राजे रे ॥ दश ॥ ५१ ॥ सनतकुंमार जुगम मा हैंवें, दोय राज हवे जालो रे ॥ त्रीजे सात चोथे सात जाजा, ब हाथ काया प्रमाणो रे ॥ दश० ॥ ॥ ५२ ॥ पांच ब्रह्म श्रायु दस सागर, लांतक बहे चौद रे || पांच हाथ तस काया कहीयें, त्रय राज
नेद रे || दश ॥ ५३ ॥ शुक्र सातमे सत्तर सा गर, वली सहसारें अदार रे ॥ चार हाथ तनु सुर देह सोहे, राज होवे तिहां चार रे ॥ दश० ॥ ५४ ॥ नवमे यानत जंगलीश सागर, प्राणत दशमे वीश रे ॥ एकादश ारण्य एकवीश, बारमे अच्युत बा वीश रे ॥ दश० ॥ ५५ ॥ ए चारे त्रण हाथनी का