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धक रुपिनी खाल उतारी, सह्यो परिसह जेण जी॥ गरनावासना दुःखथी लूट्यो, सबल दमा गुण ते ण जी ॥ श्रा० ॥ १३ ॥ क्रोध करी खंधक आचारि ज, दु अग्निकुमार जी ॥ दमक नृपनो देश प्रजा व्यो, जमशे जवह मकार जी॥० ॥ १४ ॥ चंझौ इआचारिज चलतां, मस्तक दीध प्रहार जी॥द मा करंतां केवल पाम्यो, नर दीक्षित अगार जी ॥ प्रा० ॥ १५ ॥ पांच वार पिने संताप्यो, प्रा पी मनमां ष जी ॥ पंच नव सीम दह्यो नंद नावि क, क्रोध तणां फल देख जी॥ा ॥ १६ ॥ साग रचंद, शीस प्रजाली, निशि ननसेन नरिंद जी ॥ समता नाव धरी सुरलोकें, पदुतो परमानंद जी ॥ ॥ आ ॥ १७ ॥ चंदना गुरुपीयें घणु निबंडी, धिग धिग तुऊ अवतार जी॥ मृगावती केवलसिरि पामी, एह दमा अधिकार जी ॥ आ ॥१॥ सांब प्रद्युम्न कुंअर संताप्यो, कृष्ण पायन साह जी ॥ क्रोध क री तपनुं फल हास्यो, कीधो धारिकादाह जी ॥ ॥ आ० ॥ १ए ॥ जरतने मारण मूठी उपाडी, बा दूबल बलवंत जी ॥ नपशम रस मनमांहे प्राणी, संजम ले मतिमंत जी ॥ आ० ॥ २० ॥ कासग मां चडियो अतिको), प्रश्नचंड शषिराय जी ॥ सा तमीनरक तणां दल मेल्यांकडु तेण कषाय जी॥ ॥ आ ॥ २१ ॥ आहारमाहे कोधे कृषि yक्यो, आण्यो अमृत नाव जी ॥ कूरगडूयें केवल पाम्यु,