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(४०२ ) मातणे परगाव जो ॥आ ॥ २२ ॥ पार्श्वनाथने उपसर्ग कीधा, कमठ नवांतर धीठ जी ॥ नरक तिर्य च तणां फुःख लाधां,क्रोध तणां फल दी जी॥आ॥ ॥२३॥ मावंत दमदंत मुनीश्वर, वनमा रह्यो का नसग्ग जी ॥ कौरव कटक हण्यो इटालें, त्रोड्या क मना वर्ग जी॥श्रा०॥४॥ सज्यापालक काने तरु न, नाम्यो क्रोध नदीर जं.॥देदु कानें खीना ठोका गा, नवि लूटा महावीर जी ॥ श्रा० ॥ २५ ॥ चार हत्यानो कारक दुतो, दृढप्रहार अतिरेक जी। दमा करीने मुक्तें पहोतो,उपसर्ग सह्या अनेक जी। ॥ आ० ॥ २६ ॥ पदुरमांहे नपजतो हास्यो, को धे केवल नाण जी ॥ देखो श्रीदमसार मुनीसर, सू त्र गुण्यो नहाण जी ॥ आः॥ २७ ॥ सिंह गुफावा सी पि कीधो, थूलिन ऊपर कोप जी ॥ वेश्या वचन गयो नेपालें, कीधो संजम लोप जी ॥आ॥ ॥ २७॥ चंशवतंसक काउसग रहियो, दमा तणो नंमार जी॥ दासी तेल जयो निशि दीवो, सुरपदवी लहे सार जी ॥ आ० ॥२॥ इम अनेक तस्या त्रि नुवनमें, दमागुणे नवि जीव जी॥ क्रोध करी कुग तें ते पहोता, पाडता मुख रीव जी ॥ या ॥३॥ विप हलाहल कहीयें विरुढ, ते मारे एक वार जी ।। पण कषाय अनंती वेला, आपे मरण अपार जी ॥ ॥आ॥३१॥ क्रोध करंतां तप जप कीधां, न पडे कांई ठाम जी ॥ आप तपे परने संतापे, क्रोधरां के