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इ ॥ ० ॥ ० ॥ सविहूं अंगें नन्न, सर्वांग या हार ॥ कवल प्रहार करे नही, गंजे इस्यो विद्या ॥ ० ॥ ३१ ॥ ते गर्ने किए ज बने, थाय झा न विनंग ॥ श्रथवा अवधि कहीजियें, तिरो ज्ञान प्रसंग ॥ ज० ॥ ३२ ॥ कटक करी वैक्रिय पणे, जू जी नरकें जाय ॥ को जिनवचन सुणी करी, मरी सुर पण थाय ॥ ज० ॥ ३३ ॥ बंधे मुखें गुमा हि ये, सहेतो बहु पीड दृष्टि गत बिहुं हाथगुं, रहे मूठी नीड ॥ ० ॥ ४ ॥ नर बिए वस्त्र जला दिकें, उपजे उधान ॥ वा बिहूं नारी मल्यां, कह्यो गर्न विधान ॥ उ० ३५ ॥ कोई उत्तम चिंत वे, देखी दुःख राश || पुए करूं परो नीकली, नां गर्भावास ॥ ० ॥ ३६ ॥ नंठ कोडी सूई अंगमां, कोइ चांपे समकाल ॥ तिष्णथी गर्नमां श्रगुणी. स हे वेदना बाल ॥ उ० ॥ ३७ ॥ माता नूखी नूखी 3, सुखिणी सुख याय ॥ माता सुते ते सुते, परवश दिन जाय ॥ ० ॥ ३८ ॥ गर्नथकी दुःख लखर शुं जनमे जिस वार ॥ जनम थये दुःख बिसयुं, धग मोह विकार || न० ॥ ३५ ॥ उपज्यो अशुचि पणे तिहां, मल मूत्र कलेश | पिंम अशुचि करी पूरि यो, नवि शुचि लव लेश ॥ उ० ॥ ४० ॥ तुरत रुद न करतो थको जनमे जिस वार ॥ माता पयोधर मुख ठवे, पिये दूध तेवार ॥ ज० ॥ ४१ ॥ दीसे दिन दिन दीपतो, करे रंग अपार ॥ लाम कोम माता पिता,
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