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(३५) ॥ १७ ॥ कठिनपणुं पृथिवी रचे, अवगाह आका श ॥ पांचे नूत शरीरनो, एम करे प्रकाश ॥ न० ॥ ॥ १५ ॥ बार मुहूर्त कतु प., विलसे नर नार ॥ गर्न तणी नत्पति तिहां, नही अवर प्रकार ॥ ॥ १० ॥ २० ॥ कलिल दुवे दिन सातमे, खरबुद दिन सात ॥ खरबुदथी पेशी वधे, घन मांस कहा त ॥ १० ॥ २१ ॥ मांस तणी गोटी दुवे, अडताली श टांक ॥ प्रथम मासें जिनवर कहे, मन म धरो शं क ॥ न० ॥ २२ ॥ रुधिर मांस बीजे दुवे, हवे त्रीजे मास ॥ कर्मतणे योगें करी, माता मन प्राश ॥ ॥ न० ॥ २३ ॥ चोथे मासें मातना, परिणमे सदु अंग ॥ हाथ अने पग पांचमे, तिम मस्तक संग ॥ ॥ न० ॥ २४ ॥ पित्त रुधिर बहे पडे, सातमे इम संच ॥ नव धमणी नस सातशे, पेशी सय पंच ॥ ॥ १० ॥ २५ ॥ रोमराइ पण सातमे, साडी तिन क्रोड ॥ उपजे कणा केटने, इम अागम जोड । न० ॥ २६ ॥ आठमे मासें नीपर्नु, एम सकल शरीर ॥ कंधे शिर वेदन सहे, ऊंपे जिन वीर ॥ ॥ न० ॥ २७ ॥ शोणित शुक्र संलेषमा, लघु ने व डि नीत ॥ वात पित्त कफ गर्नमें, ए थाये ण रीत ॥ ॥ १० ॥ २७ ॥ मात तणी डूंटी लगे, बालकनुं नाल ॥ रस आहार तणो तिहां, आवे ततकाल ॥ ॥ न० ॥ २ए ॥ जननी से बाहार ते, जाए नाडो नाड ॥ रोम इंडी नख चख वधे, तिम मज्जा ने हा