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निमें, जे नवलख जीव ॥ पुरुषप्रसंगें ते सद्, मरी जाय सदेव ॥ न० ॥ ७ ॥ उपजे नर नारी मले, पं चेंश्यि जेह ॥ तेह तणी संख्या नहिं, तजो कारज ए ह ॥ न० ॥ ॥ नव लख जीव टके तिहां, नत्क ष्टी वार ॥ जीव जघन्यपणे टके, एक दो त्रण चार ॥ न० ॥ ॥ जीव जघन्य तिहां रहे, मुहूरत प रिमाण ॥ बार वरसनी स्थिति तिहां, नत्कृष्टीज ण ॥ न० ॥ १० ॥ तिणे गरने को जीवडो, श्म क हे जगदीश ॥ फरी मरी आवे तो रहे, संवत्सर चो वीश ॥ न० ॥ ११ ॥ महिला वरस पंचावनें, कहियें निर्बीज ॥ पंचोतेर वरस प., थाए पुरुप अबीज ॥ न० ॥ १२ ॥ जिमणि कूखें नर वसे, तिम वामी नार ॥ वच्चें नपुंसक जाणियें, जिनव चनें विचार ॥ न० ॥ १३ ॥ हवे सामान्य पणे इहां, आव्यो गर्नावास ॥ सात दिवस ऊपर रहे, नरगति नव मास ॥ न० ॥ १४ ॥ आठ वरस तिर्यंच रहे, नल्लष्टो काल ॥ गर्नावासें जोगव्या, इम बदु जंजाल ॥ १० ॥ १५ ॥ कार्मणका यें करि लीयो, पहिलो ते आहार ॥ शुक्र अने शो णित तणो, नहि जूठ लगार ॥ १० ॥ १६ ॥ पर्यापति पूरी नही, तिहां विसवा वीश ॥ तिणे आहारें तनु थयो, आदारिक अरु मीस ॥ न० ॥ १७ ॥ पवन आवे उदरथकी, उपजावे अंग ॥ अग्नि करे थिर तेहने, जल सुरस सुरंग ॥ १० ॥