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(३९३) र्ष विबुध मुफ, बंधू तास पसाय ॥ तासु सानिध ग्रंथ में कस्यो, मन धरि हर्ष अपार ॥ ११ ॥ मू ढ मतीने माहरी, कवि मत करजो हास ॥ कृपा क री मुफ कपरें, शोधी करजो खास ॥१२॥ संब त शोल. बाशहिए, वैशाख पूनम जोय ॥ वार गुरु सहि दिन जलो, एह संवत्सर होय ॥ १३ ॥ नय र नलेणीमा वली, यातमशिदा नाम ॥ मन नाव धरिने तिहां करी, सीधां वंडित काम ॥ १४ ॥ एक शत एंशी पांच ए, दोहा अति अनिराम ॥जणे गुणे जे सांजने, नेह लहे शिवताम ॥ १५ ॥ इति ॥
॥ अथ नपदेश सित्तरी प्रारंन । ॥ उतपति जो जो पापणी, मन मांहि विमास ॥ गरनावासें जीवडो, वसियो नव मास ॥ उतपति जो जो आपणी ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ नारी तणे नानि तलें, जिन वचनें जोय ॥ फूल तणी जिम नालि का, तामें नाडी छे दोय ॥ न० ॥ ॥ तसु तलें यो नि कहीयें, वर फूल समान ॥ अांब तणी मांजर जिस्यो, तिहां मांस प्रधान ॥ 3 ॥३॥ रुधिर स्त्रवे तिण ठामथी, ऋतुकाल सदैव ॥ रुधिर शुक्र जोगें करी, तिहां पजे जीव ॥ 3 ॥ ४ ॥ जे अपाव न पवनें करी, वासित उरगंध ॥ तिणे थानक तुं उप नो, हवे दून मदंध ॥ १० ॥ ५ ॥ नाली वांस तणी घj, नरियें रू घाल ॥ ताती लोह शीलाक ते, जाले तत काल ॥ १० ॥ ६ ॥ तिम महिलानी यो