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(३९२) म शिदा नामर्थं सुर नर लागे पाय ॥ १६ ॥ वीर शासन दीपारतो, आणंद विमल सुरिंद ॥ प्रमाद पंथ दरें कस्यो, प्रगमुं तेह आणंद ॥ १७८ ॥ तास शिष्य मुनिसर धणी, श्रीविजय दान सरी श ॥ प्रगट महिम तस जागतो, पाय नमे नर ईश ॥ ॥ १७१ ॥ उपदाम रसनो कूपलो, तास पट्टधर ही र ॥ सकल सूरि शिरोमणि, सायर जिम गंनी ॥ १७ ॥ हीरवि तय गुरु हीरलो, प्रतिबोध्यो ३ कबर नूप ॥ राय राणा सेवा करे, जेहy अकल स रूप ॥ १७३ ॥ म्लेबराय जिणे वश कस्य, जग वाघि अमार ॥ विमलाचन मुक्तो कियो, शासन शोनाकार ॥ १७ ॥ कुमारपाल प्रतिबोधियो, श्रीश्रीहेम सुरिंद ॥ तिम अकवर गुरु हीरजी, मन धरि अति आणंद ॥ १७५ ॥ ध्यानवशे निज पद दियो,निज मन हर्ष अपार ॥ विजयसेनसुरि नाम थी, नित होय जय जय कार ॥ १७६ ॥ कामकुं न चिंतामणि, कल्पतरू अवतार ॥ ते सविथी जेह सिदिनी, अधिक ए नवि विचार ॥ १७७ ॥ वि जयसेन गुरुराय वर, विजयदेव सूरिंद ॥ विजय मान गुरु वंदिये, जिम सूरज उर चंद ॥ १७ ॥ त पगल वाचकमें वरू, विमल हर्ष शिरताज ॥ नामें नवनिधि संपजे, दरिसण सीके काज ॥ १७ ॥ आतमशिदा नावना, तास शिष्य मनरंग ॥ प्रेमवि जय प्रेमें करी, कलट आणी अंग ॥ १७० ॥ श्रीरत्नह