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(३२) लट आणी यंग ॥ ५० ॥ सो रामा जीनं ताहरी, हणमांही विघटाय ॥ स्वारथ पहोंचत जब रह्यो, तब फरि वैरी थाय ॥ ५१ ॥ समुहीप सायर स बे, पामे को नर पार ॥ नारी नि चरित्रनो, को न वि पाम्यो पार ॥ १२॥ ब्रह्मा नारायण ईश्वर, इंश चं नर कोड ॥ लना वचनें लालची. ते रह्या वे कर जोड ॥ ५३ ॥ ना. वदन सोहामापुं, पण वाघण अवतार ॥ जे नर एहने वा पड्या, तस लूंट्यां घर वार ॥ ५४॥ हसतमुखी दीसे नली, क रति कारमो नेह ॥ कनकलता बाहिर जिसी, अं तर पित्तल तेह ॥ ५५ ॥ पहलि प्रीत करि रंगा, मी ठा बोली नार ॥ नरने दास करि आपणो, मूके टाकर मार ॥ ५६ ॥ नारी नदन तलावडी, बड्यो सयल संसार ॥ काढणहारो को नही, ब्रमा बूंब न वार ॥ ५७ ॥ वीश वसाना जे नरा, कोई नही त स वंक ॥ नारी संगति तेहने, नि. चढे कलं क ॥ ५७ ॥ मुंज ने चंप्रद्योतना, दासीपति पा म्या नाम ॥ अजय कुमार बुधि आगलो, तेह ठग्यो अनिराम ॥ ५॥ नारी नहि रे बापडा, पण ए विष नी वेल ॥ जो. सुख वांजे मुक्तिनां, नारी संगति मेल ॥ ६० ॥ नारी जगमां ते जली, जिण जायो पु रुष रतन्न ॥ ते सतिने नित पाय नमुं, जगमां ते ध न धन्न ॥ ६१ ॥ तुं पर काम करी सदा, निज का ज न करिय लगार ॥ अदत्र नत्र करिय तुं, किम