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(३७१) पोकार ॥ ३८ ॥ कोई दिन राणो राजियो, को दि न जयो तुं देव ॥ को दिन रांक तुं अवतस्यो, क रतो नरज सेव ॥३॥कोदिन कोडी परिवस्यो, को दिन नहि को पास ॥ को दिन घर घर एकलो, नमे सही ज्युं दास ॥४०॥ को दिन सुखासन पालवी, जेठमची चकमोल ॥ रथपाला आगल चले, नित नित करत कलोल ॥ ४१ ॥ को दिन कूर कपूर तुं, जावत नही लगार ॥ को दिन रोटी कारणे, न मतो घर घर बार ॥ ४२ ॥ हीर चीर अंग पहेरि यां, चुत्रा चंदन बदु जाय ॥ सो तन जतन करत यौं, दिणमांही विघटाय ॥४३॥ सातम गोख तुं शो नतो, कामिनि नोग विलास ॥ इक दिन उही प्राव शे, रहेणोही वनवास ॥४४॥ रूपें देव कुमार स म, देख मोहे नर नार ॥ सो नर खिण कमां व ली, बलि नलि होवे बार ॥ ४५ ॥ जे विन घडि य न जायती,सो वरसां सो जाय ॥ ते वन्नन विसरी गयो, र हिंसुं चित लाय ॥ १६ ॥ देखत सब जुग जातुही, थिर न रही सवि कोय ॥ इस्युं जाणी नलु कीजियें, हियड विमासी जोय ॥ ४७ ॥ सुरपति स वि सेवा करे, राय राणा नर नार ॥ आय पहोते आ तमा, जात नलागे वार ॥ ४ ॥ देखत नर अंधा दुआ, जे मोह विंट्या बाल ॥जण्या गण्या मूरख व ली, नर नारी बाल गोपाल ॥४ए॥ रात दिवस नि ज नारिद्यु, तुं रमतो मनरंग ॥जे जोश्ये ते पूरतो,क