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मोहोढा मोढ न कीजियें, न किजें मोहोटी वात ॥ कोडी अनंत में वेचियो, त्यारे किहां गई जात ॥२७॥
आपसरूप विचार तुं, जो दुइ हियडे शान ॥ करणी तेहवी कीजियें, जिम वाधे जग वान ॥ २७ ॥ वमपण धर्म थाये नही, जोबन एजें जाय ॥ तरु ण पणे धसमस करी, पडे फरी परताय ॥ २ ॥ जरा आवी जोबन गयुं, शिर पलिया ते केश ॥ ल लुता तो बोडी नहीं, न कस्यो धर्म लवलेश ॥३०॥ पश्यि जिहां परवडा, रोग जरा नावंत ॥ जो बन चंचल आवे सदा, कर तुं धर्म महंत ॥ ३१ ॥ बते हाथ न वावस्यो, संबल न कियो साय ॥ प्राय गई मन चेतियो, पडे घसे निज हाथ ॥ ३२ ॥ध न जोबन नर रूपनो, गर्व करे ते गमार ॥ कृष्ण बल नहारिका, जातां न लागी वार ॥ ३३ ॥ आठ पहोर तुं धसमसी, धनार्थ देशांतर जायः॥ सो धन मेट्युं ताहरूं, उरज कोई खाय ॥३४॥ आंख त णे फरुकडे, कथल पाथल थाय ॥ इस्युं जाणी जिव बापडा, म करिश ममता माय ॥ ३५ ॥ मा या सुख संसारमां, ते सुख सहिय असार ॥ धर्म प सायें सुख मले, ते सुख नावे पार ॥ ३६ ॥ नय न फरुके जिहां लगें, तिहां तहारु सङ कोय ॥ नयन फरूकत जब रही, तब तहारूं नहि होय ॥ ॥ ३७ ॥ पाप कियां जिव तें वद, धर्म न कियोस गार ॥ नरग पड्यो यम कर चड्यो, तिहां करे