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(३७ ) जोय ॥ माता सगपण नारि मली, नारामा ता होय ॥ १५॥ सूतो सुपन जंजालमां, पाम्यो जाणे राज ॥ जब जाग्यो तब एकलो, राजन सीके काज ॥ १६ ॥ तिम ए कुटुंब सद मल्यु, खोटी मा या जाल ॥ प्रायू पहोंचे आपणे, खिण थाये वि सराल ॥ १७ ॥ सोदो लेयण जण मिले, जिहां जोडी सहि हाट ॥ ाथ सारु विवसाय करी, फरि चाव्या निजवाट ॥ १७ ॥तिम जव जमतां सवि मल्या, कुटुंब जोडि जो हाट ॥ पुण्य पाप विवसाय करी, जो कतरियें घाट ॥ १५ ॥श्म कुटुंब मिल्यु कारिमुं, माय अने वलि ताय ॥ बंधू नगिनी नार जा, को केनो न कहाय ॥ २० ॥ नव नव नाट क तुं वली, नाच्यो करि बदु रूप ॥ नाटक एकगुं नाचियो, जो लूटे नवं कूप ॥ १ ॥ उत्तम कुल नर नव लही, पामि धर्म जिनराय ॥ प्रमाद मू की कीजियें, खिण लाखीणो जाय ॥ २२ ॥ जिसुं कीजे तिसुं पायें, करे तैसा फल जोय ॥ सुख उख
आप कमायें, दोष न दीजें कोय ॥ २३ ॥ दो पदीजें निज कर्मने, जिण नवि कीधो धर्म ॥ धर्म विना सुख नवि मले, ए जिन शासन मर्म ॥२४॥ वावी कूरी कोदरी, तो क्युं लुपीयें शाल ॥ पुण्य वि ना सवि जीवडा, आशा आल पंपाल ॥ २५ ॥ आय पहोती आतमा, कोइ नवि राखण हार ॥ इंश चंद जिनवर वली, गया सवी निरधार ॥२६॥