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(३३) बूटिश नव पार ॥ ६ ॥ पाप घडो पूरण जरी, तें ली शिर नार ॥ ते किम बूतिश जीवडा, न करी ध में लगार ॥ ६३ ॥ सुं जाणो कूड कपट, बल नि इतुंबांम ॥ ते बांमीने जीवडा, जिन धर्म चित मांग ॥ ६४ ॥ जिण वचने पर मुख हुए, जिण हो य प्राणी घात ॥ क्लेश पडे निज प्रातमा, तज न त्तम ते वात ॥ ६५ ॥ जिम तिम पर सुख दीजियें, पुःख न दीजें कोय ॥ मुख देई उरख पामियें, सुख दे ई सुख होय ॥ ६६ ॥ पर तांत निंदा जेरे. कूडां देवे घाल ॥ मर्म प्रकासे परतणा, तेथि नलो चं माल ॥ ६७ ॥ पटमासीने पारणे, इक सिथ लहे याहार ॥ फरतो निंदा नवि टले, तस मुर्गति अव तार ॥ ६ ॥ बार उपर जिम लीप', तिम को) तप कीध ॥ तस तप जप संजम मुधा, एके काज न सीध ॥ ६७ ॥ पूर्व कोडिने आनखे, पाली चारित्र सार ॥ सुरूत सुणो सवि तेहy, मां होवे बा र ॥ ७० ॥ पर अवगुण सरशव समो, अवगुण नि ज मेरु समान ॥ कां करे निंदा पारकी, मूरव आप ण शान ॥ ७१ ॥ पर अवगुण जिम देखियें, तिम परगुण तुं जोय ॥ परगुण लेतां जीवडा, अखय जरामर होय ॥ ७२ ॥ क्रोधी नर अ सदा, कहिये जे उलटी रीश ॥ ते डोडी उर आतमा, रहे जोय ण पणवीस ॥ ७३ ॥ गुण कीधा माने नही, अ वगुण मांमी मूल ॥ ते नर संगति बांझियें, पग पग