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मुफ़ मन थाय ॥ मा० ॥ ए आंकणी ॥ देवघणा धरणी तजें, ते दीवा न सुहाय ॥ मा० ॥ वा० ॥ २ ॥ श्र खीयां प्यासी थइ रही, देखण प्रतु मुख लाल ॥ मा० ॥ अंतरजामी माहेरा, महेर नजरशुं निहा ल ॥ मा० ॥ वा० ॥ ३ ॥ यात्रा करानी होंश बे, बहु दिननी मनमांहे ॥ मा० ॥ हुकम करो प्रभुजी हवे, वुं धरिय चाहे ॥ मा० ॥ वा० ॥ ४ ॥ दूर देशांतर जइ रह्या, तेनां दरिसण सरज्यां थाय ॥ मा० ॥ यास विलु मानवी, रात दिवस गुण गा य ॥ मा० ॥ वा० ॥ ५ ॥ समरथ साहिबजी दवे, लिंग कीजें तास ॥ मा०॥ प्रापति होय तो पामीयें, नाग्य फले सुविलास ॥ मा० ॥ वा० ॥ ६ ॥ तुम वि ए कहो कोण सांजे, सेवकनी अरदास ॥ मा० ॥ जाणुं बुं सही पशो, मनवांबित सुख वास ॥ मा० ॥ वा० ॥ ७ ॥ कूडा कलियुगमां प्रभु, परता पूरण हार ॥ मा० ॥ मारगमां सानिध करो, आप थई अ सवार ॥ मा० ॥ वा० ॥ ८ ॥ नक्तिना रंग अनेक बे, साहिब सुगुण सुजाण ॥ मा० ॥ मन मोहन जगजी वना, प्रभुजी मुऊ महिराण ॥ मा० ॥ या० ॥ ॥ प्रत्य द गोडी पासजी, अरिदल चंजणहार ॥ मा० ॥ वाचक सहज सुंदर तणो, नितलान जय जय कार ॥ मा० ॥ वा० ॥ १० ॥ इति संपूर्णम् ॥ ॥ अथ सुविधिजिन स्तवनं ॥
॥ सुरत सुविधि जिणंदनी रे लो, महिमावंत प्र