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धान ॥ माहारा वालाजी रे ॥ तुमने श्रमारी वंदना रे लो ॥ नर्यण पावन थयां देखतां रे लो; गुण अनंत नगवंत ॥ मा० ॥ हवे न बोडुं तहारी चाकरी रे लो ॥ १ ॥ वामा राणीना नंदना रे लो, सांजल दीनना नाथ ॥ मा० ॥ तुम० ॥ प्रेम धरी सेवा करूं रे लो, हवे न बो डुं तारो साथ ॥ मा० ॥ हवे० ॥ २ ॥ सोना रूपानां फूलनी रे लो, यांगी बनाडु सार ॥ मा० ॥ तु० ॥ नाच करूं प्रभु यागनें रे लो, मादलना चौंकार ॥ ॥मा || हवे ॥ ३ ॥ अमने ते शिवसुख आपजो रे लो, सुं कहुं वारोवार ॥ मा० ॥ तु० ॥ श्रातम अ नुनव ध्यानथी रे लो, लहीयें वंबित सार ॥ मा० ॥ || हवे ॥ ४ ॥ मनना मनोरथ माहरा रे लो, सफल थया सहु याज || मा० ॥ तु० ॥ नित्यलान प्रभु पद सेवतां रे लो, सीधां सघलां काज ॥ मा० ॥ हवे ० ॥ ५॥ ॥ अथ सिद्धस्वरूप परिकर विपक्षत्याग स्तवनं ॥
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॥ अविनाशीनी सेजडीयें. रंग लागो मोरी सज नी ॥ एकली ॥ केली करंतां गइ नवि जाली, प्रा जूनी रजनी जी ॥ अवि० ॥ १ ॥ मान सरोवर हंस तणी परें, मुक्ति तथा गुण चुगताता ॥ ज्ञान वन की कुंज गलिन में, तमराम रमताता । श्रवि॥ ॥ २ ॥ सासू र्मति कामणगारी, ससरो लोन धू तारो जी ॥ पिता मोह बे महापापियो, माया मात गारी जी ॥ ० ॥ ३ ॥ क्रोध पाडोस केड न मेले, कंदर्प देवर मीठग जी ॥ विषय वासना गइ दे